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ऊँचाइयों को छूना है तो धारणाओं की पट्टी हटाइये…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Sep 2
  • 3 min read

Sep 2, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, हम सभी ने बचपन में अंधों और हाथी वाली कहानी सुनी है जिसमें छह अंधे व्यक्ति हाथी को छूकर पहचानने की कोशिश कर रहे थे। किसी ने सूंड छुई और कहा, “यह रस्सी है।”, किसी ने पैर छुआ और कहा, “यह पेड़ है।”, किसी ने कान को पत्ता समझा और किसी ने दाँत को भाला। हर किसी की बात आंशिक रूप से सही थी, पर वह पूरी नहीं अधूरी थी। सोच कर देखिए दोस्तों, अगर वे उस हाथी को पूरा देख पाते तो क्या वे उपरोक्त धारणा रखते? निश्चित तौर पर नहीं क्योंकि वे उसे पूरा एक साथ देख सकते थे।


दोस्तों, आज हमारा कॉर्पोरेट वर्ल्ड पूरा ऐसा ही हो गया है, जिसका एहसास मुझे हाल ही में एक एक्सीडेंट के बाद इंश्योरेंस क्लेम फाइल करते वक्त और रोड साइड असिस्टेंट की सर्विस लेते वक्त हुआ। जिसमें इंश्योरेंस और आरएसए का कॉलसेंटर व सर्विस प्रोवाइडर बिल्कुल अलग-अलग अपेक्षाओं और धारणाओं के साथ काम कर रहे थे और कस्टमर के रूप में मैं परेशान हो रहा था। ठीक इसी तरह का अनुभव मुझे हाल ही में सोलर प्लांट ऑर्डर करते वक्त हुआ। जिसमें सेल्समेन और सेल्स मैनेजर ने मुझे कंपनी के ब्रोशर और सेल्स पिच के अनुसार प्रोडक्ट फ़ीचर्स और उसपर वारंटी के बारे में समझाया जबकि दूसरी ओर ऑर्डर के बाद उनके कन्फर्मेशन लेटर और स्टेट हेड ने कुछ और कहा। कुल मिलाकर कहूँ तो दोनों बातों में काफ़ी अंतर था।


इसी बात को एक बिज़नेस कंसल्टेंट और ट्रेनर के रूप में भी मैंने कई बार महसूस किया है। जब हम कॉर्पोरेट वर्ल्ड में नए प्रोडक्ट या सर्विस आईडिया पर चर्चा करते हैं तो एक ही आईडिया पर अलग-अलग डिपार्टमेंट की प्रतिक्रिया बिल्कुल अलग-अलग आती है। जैसे मार्केटिंग टीम कहती है,“कस्टमर को यह चाहिए।”, इस पर इंजीनियरिंग टीम की पहली प्रतिक्रिया मिलेगी कि, “यह तकनीकी रूप से संभव नहीं।” अब अगर आप किसी तरह इन दोनों को राजी कर लोगे तो फाइनेंस टीम बताएगी कि, “उनके पास बजट नहीं है।” और अगर इसका भी रास्ता निकाल लिया तो एचआर टीम कहेगी कि, “उनके पास रिसोर्स की कमी है।” कुल मिलाकर कहूँ तो हर डिपार्टमेंट सीमित दृष्टि से ही अपने कार्य को देखता सा प्रतीत होता है। याने अंधों और हाथी की कहानी की ही तरह कोई भी पूरे हाथी को एक साथ नहीं देख पा रहा होता है।


ऐसा ही कुछ हाल एस.ए.पी. या ऑटोमेटेड कॉल सेंटर जैसे सिस्टम का होता है, जिसमें उपभोक्ता याने कस्टमर से ज्यादा महत्वपूर्ण एस.ओ.पी. याने प्रोसेस होती है और इसी बात को संस्था के अंदर रहते हुए देखा जाये तो आप पायेंगे कि हर विभाग के लिए अपना-अपना मोड्यूल और प्रोसेस सबसे अहम है। फिर भले इससे कंपनी का मूल उद्देश्य ही क्यों ना पीछे छूट रहा हो।


यकीन मानियेगा दोस्तों, सभी विभागों का एक साथ, एक प्लेटफार्म पर आना ही किसी भी संस्था को सफल बनाता है। याने विभिन्न विभागों, टीमों का एक साथ आना, सारी प्रोसेस को एक दूसरे की प्राथमिकताओं और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाना और सही तरीक़े से इंटीग्रेट करते हुए कार्य करना ही किसी भी कंपनी को लोगों का पसंदीदा ब्रांड बनाता है।इसका अर्थ हुआ किसी भी संस्था के लिए सफलता तभी आती है जब सब मिलकर पूरे सिस्टम को समझें और एक-दूसरे के दृष्टिकोण का सम्मान करते हुए कार्य करें।


यही बात परिवार और रिश्तों के लिए भी इसी तरह लागू होती है। याने परिवार में भी हमें बड़े और छोटों, सभी का दृष्टिकोण समझना चाहिए और उनकी प्राथमिकताओं और पसंद नापसंद को देख कर आगे बढ़ना चाहिए। तभी आप खुशहाल परिवार की परिकल्पना को सही रूप दे पाएँगे।


अंत में इतना ही कहूँगा दोस्तों कि 21वीं सदी में सफलता का मतलब केवल अपना काम अच्छा करना नहीं है। इस दुनिया में सफलता उन्हीं को मिलती है जो पूरी तस्वीर देखकर, विविध दृष्टिकोणों को अपनाते हुए लगातार सीखते हैं और काम करते हैं। तो दोस्तों, आज ही अपनी आँखों से धारणाओं की पट्टी हटाइए, पूरा हाथी देखिए और अपनी सफलता को नई ऊँचाइयों तक ले जाइए।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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