कभी हार ना मानें…
- Nirmal Bhatnagar
- Oct 6
- 3 min read
Oct 6, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

जीवन में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो परिस्थितियों से नहीं, बल्कि अपने हौसले से अपनी पहचान बनाते हैं। श्रीकांत बोला की कहानी ऐसे ही एक युवा की कहानी है जिसने साबित किया कि अंधकार में भी अगर विश्वास की लौ जलती रहे, तो रास्ता खुद बन जाता है।
श्रीकांत बोला का जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। परिवार की सालाना आय बीस हज़ार रुपये से भी कम थी। जन्म से ही श्रीकांत दृष्टिहीन थे — यानी वे देख नहीं सकते थे। पर जो चीज़ उन्हें बाकियों से अलग बनाती थी, वह थी उनका जज़्बा और सीखने की अटूट चाह।
बचपन में वे अपने पिता के साथ खेतों में जाते थे। एक दिन खेत में काम करते हुए कुछ ऐसा हुआ कि पिता को महसूस हुआ की यह बच्चा खेती के लिए नहीं बना है, यह तो कुछ बड़ा करेगा। उस दिन उन्होंने ठान लिया कि वे अपने बेटे को पढ़ाएँगे, पर गाँव में न स्कूल था, न दृष्टिहीनों के लिए कोई व्यवस्था। बड़ी मुश्किलों के बाद पास के गाँव के एक स्कूल में श्रीकांत का दाखिला हुआ। शुरुआत में उन्हें न शिक्षक समझते थे, न साथी। वे अक्सर अकेले रहते। लेकिन श्रीकांत ने हार नहीं मानी और दसवीं की परीक्षा में 90% से अधिक अंक लाकर सबको चौंका दिया। अब उन्होंने विज्ञान (Science) लेने की ठानी। लेकिन स्कूल ने साफ़ कह दिया, “अंधे बच्चे को विज्ञान पढ़ाना संभव नहीं।”
श्रीकांत ने यह बात मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने सीधे राज्य सरकार पर केस दायर कर दिया। नतीजा यह हुआ कि सरकार ने उन्हें विज्ञान पढ़ने की अनुमति दी — लेकिन अपनी जिम्मेदारी पर। चारों ओर से लोग हँस रहे थे, “अंधा विज्ञान पढ़ेगा?” लेकिन श्रीकांत ने चुपचाप मेहनत की और बारहवीं में 97% अंक लेकर सबको जवाब दिया।
अब उनका सपना था IIT में प्रवेश पाने का। लेकिन जब उन्होंने आवेदन किया, तो जवाब आया, “दृष्टिहीन छात्र IIT में नहीं पढ़ सकते।” यह झटका बड़ा था, पर उन्होंने कहा, “अगर IIT को मेरी ज़रूरत नहीं, तो मुझे भी IIT की ज़रूरत नहीं।” इसके पश्चात उन्होंने अमेरिका के प्रतिष्ठित संस्थान MIT (Massachusetts Institute of Technology) में आवेदन किया और उन्हें वहां प्रवेश भी मिल गया। MIT से स्नातक होने के बाद उन्होंने भारत लौटकर Bollant Industries की स्थापना की, जहाँ के अधिकतर कर्मचारी शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं। आज Bollant Industries की वैल्यू लगभग ₹400 करोड़ (लगभग £48 मिलियन) है, और यह पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाती है।
दोस्तों, श्रीकांत बोला की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर तुम सपना देख सकते हो, तो उसे पूरा भी कर सकते हो। बस तुम्हें जीवन में आने वाली कठिनाइयों को रुकावट के स्थान पर अवसर मानना और राह में मिली असफलताओं को सीख मानना शुरू करना होगा। याद रखियेगा, सफल वही होता है जो गिरने के बाद भी खड़ा होना जानता है; जो ठोकरों को सीढ़ी बनाता है।
दोस्तों, अगर वाक़ई में सफल होना है तो कभी हार ना मानें। बस अपनी सोच बदलें और ख़ुद को याद दिलायें कि चुनौतियाँ आपको रोकने नहीं आतीं, बल्कि आपको मजबूत बनाने आती हैं। असफलता कितनी भी बड़ी क्यों ना हो, सपने उससे भी बड़े देखो और उन्हें पूरा करने के लिए रोज़ एक कदम आगे बढ़ते रहो। याद रखना, जो अन्धेरे में भी अपनी रोशनी खुद जलाना जानता है, वही असली विजेता होता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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