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कर्म ही सच्चा साथ निभायेंगे…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • 11 minutes ago
  • 3 min read

Oct 17, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, कुछ कहानी और किस्से ऐसे होते हैं जो सिर्फ़ सुनने के लिए नहीं बल्कि जीवन में उतारने के लिए होते हैं। आज भगवान गौतम बुद्ध का जो क़िस्सा मैं आपसे साझा कर रहा हूँ वह भी कुछ ऐसा ही है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम जीवन में सही चीज़ों से प्रेम कर रहे हैं या भ्रम से।


एक बार भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायियों को एक कहानी सुनाई, जो इस प्रकार थी। बात कई साल पुरानी है, गाँव में रहने वाले एक व्यक्ति की चार पत्नियाँ थीं। जिनके साथ उसका जीवन बड़ा मजे से बीत रहा था, लेकिन जब मृत्यु निकट आई, तो उसे डर और अकेलेपन ने घेर लिया। एक दिन वह अपनी पहली पत्नी के पास गया और उससे बोला, “मुझे लग रहा है कि मेरा अंतसमय बहुत नज़दीक है। इस जीवन में मैंने तुमसे बहुत प्रेम किया है। मेरी मृत्यु के पश्चात क्या तुम मेरे साथ चलोगी?” पत्नी गंभीर स्वर में बोली, “नहीं स्वामी, हमारा साथ यहीं तक था।” और फिर वो वहाँ से चली गई।


वह उदास होकर दूसरी पत्नी के पास गया और उसे भी पूरी बात बताते हुए बोला, “क्या तुम मेरे साथ चलोगी?” वह मुस्कराई और बोली, “जब तुम्हारी पहली पत्नी ने मना किया, तो मैं कैसे चल सकती हूँ?” वह व्यक्ति बड़े दुखी मन से तीसरी पत्नी के पास गया और पूरी बात दोहराते हुए उससे भी वही प्रश्न पूछा। तीसरी पत्नी ने भी सिर झुकाकर कहा, “मुझे खेद है, मैं केवल तुम्हारी अंतिम यात्रा तक चल पाऊँगी, उसके आगे नहीं।”


थका-हारा व्यक्ति अपनी चौथी पत्नी के पास पहुँचा और बड़ी हिम्मत के साथ बड़े ही धीमे स्वर में पूरी बात दोहराते हुए बोला, “क्या तुम मृत्यु के बाद भी मेरा साथ दोगी और मेरे साथ चलोगी?” चौथी पत्नी बड़ी खुशी के साथ बिना एक भी क्षण गँवाये बोली, “इसमें पूछने की क्या बात है स्वामी? मैं हमेशा से आपके साथ रही हूँ और आगे भी रहूँगी - मृत्यु के बाद भी।”


कहानी समाप्त होने के पश्चात भगवान बुद्ध एक क्षण के लिए रुके फिर इस कहानी में छुपे भाव को समझाते हुए बोले, “यह कहानी हमारे जीवन का प्रतीक है। हममें से हर व्यक्ति, फिर चाहे वह पुरुष हो, या महिला, सभी के पास ये चार “पत्नियाँ” होती हैं। हमारी पहली पत्नी, हमारा शरीर होता है, जिससे हम सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं, जिसे हम सबसे ज़्यादा सजाते-सँवारते हैं,
पर मृत्यु के बाद यही सबसे पहले हमें छोड़ जाता है या यूँ कहूँ यह मिट्टी में मिल जाता है और फिर भी हम इसे ही “मैं” समझते हैं।


हमारी दूसरी पत्नी, हमारा धन और भाग्य के रूप में होती है। जिसे कमाने में हम अपने इस अमूल्य जीवन को खपा देते हैं। पर जब मृत्यु आती है, तो न सोना, न रुपया, न बैंक बैलेंस, कुछ काम नहीं आता है और ना ही यह हमारे साथ जाता है। तीसरी पत्नी, हमारे परिवार, रिश्तों और सगे संबंधियों के रूप में होती है। ये सारे रिश्ते जीवित रहते हमारे जीवन का आधार होते हैं, लेकिन मृत्यु के पश्चात ये हमारे साथ सिर्फ़ अंतिम यात्रा तक चल पाते हैं। इसी बात को अर्जुन को समझाते हुए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा था “आत्मा का कोई स्थायी रिश्ता नहीं होता।” हमारी चौथी पत्नी, हमारे कर्म होते हैं, जो एक सच्चे साथी की तरह जन्म-जन्मांतर तक हमारे साथ चलते हैं। याने ये सच्चे दोस्त की तरह हर जन्म, हर मृत्यु में हमारे साथ रहते है। यही तय करते है कि हमें स्वर्ग मिलेगा या नया जीवन।


कुल मिलाकर कहूँ दोस्तों, तो हम जीवनभर शरीर, धन और रिश्तों के पीछे भागते हैं और इन्हीं के चक्कर में अपने कर्मों को भूल जाते हैं, जो सदा हमारे साथ रहते हैं। याद रखियेगा दोस्तों, जो कर्म हम आज करते हैं, वही कल हमारा चेहरा बनकर लौटते हैं। इसलिए बुद्ध कहते हैं, “जीवन का सबसे बुद्धिमान निर्णय यह नहीं कि तुमने कितना पाया, बल्कि यह है कि तुमने कितना सही किया।” क्योंकि अंत में शरीर छूट जाएगा, धन बिखर जाएगा, रिश्ते थम जाएँगे, पर तुम्हारे कर्म, तुम्हारा सच्चा साथ निभाएँगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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