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चोरों को अपना आदर्श ना बनाएँ…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Mar 30
  • 3 min read

Mar 30, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, समाज में जीवन मूल्यों के गिरते स्तर को देख अक्सर लोग टिप्पणी करते या इस पर शिकायत करते तो नजर आते हैं, लेकिन साथ ही गिरते जीवन मूल्यों की असली सच्चाई को जानने और मानने से दूर भागते भी नजर आते हैं। चलिए आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ जो हमारे समाज को आईना दिखाती है।


बात कई साल पुरानी है, एक दिन एक शिक्षक बैंक से अपनी सैलरी निकाल कर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर जाने के लिए निकले। कुछ दूर पैदल चलकर उन्होंने एक बस पकड़ी, जो पहले से ही खचाखच भरी हुई थी। जैसे-तैसे वे भीड़ में जगह बनाकर खड़े हो गए। बस की इस भीड़ में एक शातिर चोर और जेबकतरा भी था, जिसने मौक़ा पाते ही शिक्षक की जेब से उनका पूरा वेतन चुरा लिया और आराम से थोड़ा आगे जाकर खड़ा हो गया।


कुछ देर बाद कंडक्टर शिक्षक के पास पहुंचा। उसे देखते ही शिक्षक ने अपनी जेब में हाथ डाला, लेकिन वहाँ कुछ भी ना पा उनका चेहरा शर्म से लाल हो गया और ज़ुबान लड़खड़ाने लगी। कंडक्टर शिक्षक की स्थिति तुरंत भाँप गया और हँसते हुए उनपर तंज कसते हुए बोला, ‘क्या बात है गुरुजी? समाज में इतना बड़ा नाम और जेब में किराए के पैसे भी नहीं?’ कंडक्टर अभी अपनी बात पूर्ण भी नहीं कर पाया था कि पीछे बैठा एक व्यक्ति हँसते हुए ऊँची आवाज में बोला, ‘क्या जमाना आ गया है, लोगों को संस्कारों की शिक्षा देने वाले आज स्वयं बिना टिकिट यात्रा करने का प्रयास कर रहे हैं।’


ड्राइवर और सहयात्रियों के व्यंग्य और बस में सवार यात्रियों की हंसी ने शिक्षक को और भी शर्मिंदा कर दिया। वे अपने दोनों हाथ जोड़कर कुछ कहने का प्रयास ही कर रहे थे कि तभी चोर एकदम से बोला, ‘यह क्या कर रहें हैं गुरुजी? मैं जानता हूँ कि आप कितने संस्कारवान और अच्छे हैं। लोगों की बातों को नजरअंदाज कीजिए।’ बस में मौजूद लोगों के सामने ख़ुद को नेकदिल साबित करते हुए चोर कंडक्टर की ओर देखता हुआ बोला, ‘कंडक्टर भाई, चिंता मत करो। गुरुजी का किराया मैं दूंगा। आखिर शिक्षा देने वाले का सम्मान हम सभी को करना चाहिए।’


उसके शब्दों को सुनते ही पूरी बस तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज गई। शिक्षक भी उसके इस नेकदिल कार्य को देख नतमस्तक थे। उन्होंने चोर को आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘ईश्वर आपको हमेशा खुश रखे और समाज में आपके समान दयालु लोग और बढ़ें।’ शिक्षक के इन शब्दों को सुन बस में बैठे अन्य यात्रियों ने भी चोर की उदारता की प्रशंसा की और उसे दुआएँ दीं। मजे की बात तो यह है दोस्तों, कि पूरी बस में किसी को ये एहसास भी नहीं हुआ कि वे जिसके गुण गा रहे हैं, वही असल में शातिर चोर और जेबकतरा है और शिक्षक की लूट का गुनहगार है।’


दोस्तों, कहने के लिए यह एक कहानी है, लेकिन कहीं ना कहीं यह हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई की ओर इशारा भी करती है। आज भी हमारे समाज में ऐसे कई चोर मौजूद हैं, जो पहले हमारा सब कुछ छीन लेते हैं और फिर उसी चोरी किए गए धन का छोटा सा हिस्सा लौटाकर हमारी नज़रों में महान बन जाते हैं। उनके इस छोटे से नेकदिल कार्य को देख, हम उन्हें सम्मानित करते हैं, उनकी जय-जयकार करते हैं। लेकिन यहाँ मेरे मन में एक सवाल आता है, ‘आख़िर कब तक हम ऐसे ही गलती करते रहेंगे और चोरों का महिमा मंडन करते रहेंगे?


थोड़ा गहराई से सोच कर देखियेगा दोस्तों, बढ़ता भ्रष्टाचार, गिरते जीवन मूल्य, कहीं ना कहीं ग़लत लोगों का महिमा मंडन करने और उनकी नक़ली उदारता को असली मान कर उन्हें अपना आदर्श बनाने की वजह से है। इसी वजह से कहीं ना कहीं ‘बसों’ में याने हमारे समाज में चोर बढ़ते जा रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो ग़लत तरीकों के साथ ख़ुद को आराम से समाज में स्थापित कर लेने का यह सूत्र ही कहीं ना कहीं लोगों को चोर बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।


दोस्तों, अगर आप वाकई अच्छे समाज में रहने के इच्छुक हैं तो आज से ही चोरों द्वारा उदारता दिखाने की कोशिश करने पर उनकी असलियत को पहचानिए। उनसे सवाल पूछिए और सच्चाई को सामने लाइए। यही समाज को बेहतर बनाने का एकमात्र तरीका है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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