छुट्टियों में बच्चों को सक्रिय और सुरक्षित रखने की प्रभावी रणनीतियाँ…
- Nirmal Bhatnagar

- May 25
- 3 min read
May 25, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, अगर आप मुझसे मेरे जीवन के सबसे अच्छे समय के बारे में पूछेंगे तो मैं कहूँगा, “गर्मी की छुट्टियाँ!” क्योंकि यह वो दिन होते थे जब हम किताबों से बाहर निकल कर जाने-अनजाने में ना सिर्फ़ ख़ुद को खोजते थे, बल्कि बेहतर भी बनाते थे। और हाँ ऐसा सिर्फ़ मैंने ही नहीं, आपने भी किया है। अरे! यह क्या आप तो चौंक गए। चलिए जरा याद कीजिए गर्मियों की छुट्टियों में आपने क्या-क्या किया? स्कूल की व्यस्त दिनचर्या से राहत पाकर आप नाना-नानी, दादा-दादी के यहाँ या फिर घूमने गए, आपने हॉबी क्लास जॉइन करी, आपने खेल मैदान पर काफ़ी समय बिताया। इन सब गतिविधियों ने मनोरंजन के साथ-साथ ना सिर्फ़ आपका और मेरा शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास किया, बल्कि हमें ख़ुद की पसंद-नापसंद को पहचानने में सक्षम बनाया।
लेकिन नंबरों की होड़, कोचिंग के शेड्यूल आदि के कारण आजकल बच्चों को यह मौके नहीं मिल पा रहे हैं। इसलिए वे स्कूल की व्यस्त दिनचर्या से राहत पाकर भी अपनी रुचियों और प्रतिभाओं को ना तो पहचान पा रहे हैं और ना ही उसे निखार पा रहे हैं। ऐसे में अब माता-पिता की भूमिका और भी ज़्यादा अहम हो गई है क्योंकि अवकाश के दौरान बच्चों को व्यस्त और सकारात्मक गतिविधियों में संलग्न रखना उनकी सुरक्षा और समग्र विकास के लिए आवश्यक है अन्यथा वे अनुचित और नकारात्मक आदतों के शिकार भी हो सकते हैं। जैसे, अनुचित गतिविधियों में भाग लेना, अस्वास्थ्यकर संगत का हिस्सा बन जाना, गलत आदतों को अपना लेना, आदि।
दोस्तों, अगर आप अपने बच्चों को इन नकारात्मक बातों और आदतों से बचाने के साथ उन्हें सक्रिय और सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो आप उन्हें विभिन्न रचनात्मक और शैक्षिक गतिविधियों में शामिल करा सकते हैं। इसके साथ ही आप निम्न उपायों को भी आजमा सकते हैं-
1) बच्चों के साथ समय बिताएँ
बच्चों के साथ समय बिताना न केवल उन्हें सुरक्षित महसूस कराता है, बल्कि परिवार के सदस्यों के बीच घनिष्ठता भी बढ़ाता है। इसलिए बच्चों की छुट्टियों के दौरान थोड़ा अतिरिक्त समय निकालें और उनके साथ खेलें, उन्हें कहानियाँ सुनाएँ, अपने बचपन और जीवन के अनुभव साझा करें, अच्छी फिल्म देखें, आदि।
2) नए कौशल सीखने के लिए प्रेरित करें
बच्चों की रचनात्मकता बढ़ाने, नए कौशल को सिखाने और उनकी रुचियों को पहचानने में समर या हॉबी क्लास महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इसलिए छुट्टियों के दौरान उन्हें संगीत, नृत्य, चित्रकला, खाना बनाना या कोई खेल सीखने के लिए प्रेरित करें।
3) सेवा कार्यों से जोड़ें
सेवा और सामाजिक कार्यों में भाग लेने से बच्चों में करुणा, सहयोग और जिम्मेदारी की भावना विकसित होती है। इसलिए उन्हें स्थानीय सामुदायिक सेवाओं में स्वैच्छिक रूप से भाग लेने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें।
4) घूमने जाएँ
प्रकृति से जोड़ने, इतिहास सिखाने, गर्व के भावना विकसित करने, आत्मनिर्भर बनाने, नए लोगों से जुड़ने, सीमित साधनों में जीने, विपरीत स्थितियों या विपदा जैसी स्थिति में संयमित रहने, प्रॉब्लम सॉल्विंग सिखाने, आदि जैसी बातों या कौशल को सिखाने में घूमने जाना महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
5) आउटडोर गतिविधियों और खेल से बच्चों को जोड़ें
पार्क या पिकनिक जाना, साइकिलिंग, तैराकी या अन्य बाहरी खेलों में भाग लेना आदि कुछ ऐसे कार्य हैं जो बच्चों को प्रकृति के पास लाने के साथ-साथ उन्हें नए लोगों से जुड़ना सिखाते हैं। इसलिए उन्हें आउटडोर गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करें।
कहते हैं गलत या ख़राब संगत बने-बनाए कार्य पर पानी फेर सकती है, उनके व्यवहार और दृष्टिकोण पर गहरा प्रभाव दाल कर अच्छे-खासे बच्चे को बिगाड़ सकती है। इसलिए छुट्टियों के दौरान बच्चों को नकारात्मक संगत से बचाएँ। इसके लिए आप निम्न तीन बातों पर ध्यान दें-
1) बच्चों के दोस्तों और उनके सामाजिक परिवेश पर नजर बनाए रखें।
2) बच्चों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश और अनुशासनात्मक नियम बनाएं, जिससे वे सही और गलत के बीच अंतर कर सकें और अपनी सीमाओं को पहचान सकें।
3) सकारात्मक संबंधों को प्रोत्साहित करते हुए बच्चों को ऐसे लोगों के संपर्क में लाएं जो उनके लिए सकारात्मक प्रेरणा का स्रोत बन सकें। जैसे शिक्षक, मेंटर, या परिवार के सदस्य, आदि।
निष्कर्ष
अंत में इतना ही कहना चाहूँगा की अवकाश के दौरान बच्चों को सुरक्षित और सक्रिय रखने के लिए माता-पिता की सतर्कता और समर्पण आवश्यक है। बच्चों को समय का सदुपयोग करने में सहायता करें, जिससे वे न केवल नई चीज़ें सीख सकें, बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी स्वस्थ रह सकें। इसके साथ ही याद रखियेगा दोस्तों की हर बच्चा अनमोल होता है, और सही मार्गदर्शन से वो अपने जीवन में सकारात्मक और सार्थक बदलाव ला सकता है और यही हर माता-पिता का लक्ष्य होता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर




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