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जीना हो ‘जीवन’, तो छोड़ें अहंकार…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Dec 11, 2022
  • 3 min read

Dec 11, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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आईए दोस्तों आज के लेख की शुरुआत एक बहुत ही प्यारी कहानी से करते हैं। गाँव के बाहरी छोर पर एक बहुत ही गरीब लेकिन स्वभाव से बहुत ही नर्म, शांत और मेहनती जुलाहा रहता था। उसके हाथ की बनाई कलात्मक और सुंदर साड़ी की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। उसके अच्छे कार्य और कभी ग़ुस्सा ना करने वाले शांत व्यवहार के कारण लोग दूर दूर से उससे साड़ी ख़रीदने आया करते थे।


एक दिन पास ही के शहर में रहने वाले एक अमीर सेठ के लड़के ने जुलाहे के व्यवहार की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। वह उस जुलाहे के पास पहुँचा और वहाँ रखी साड़ियों को देखने लगा। लड़के ने एक साड़ी उठाते हुए उसकी क़ीमत जुलाहे से पूछी। जुलाहे ने अपने चित-परिचित शांत अन्दाज़ में मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘भैया, यह साड़ी पाँच सौ रुपए की है।’ उस लड़के ने साड़ी को बीच में से आधा फाड़ा और बोला, ‘मुझे तो यह वाली आधी साड़ी चाहिए, इसकी क़ीमत बताओ।’ जुलाहा पूर्व की ही तरह शांत रहते हुए बोला, ‘अब यह ढाई सौ रुपए की है।’


जुलाहे के शांत व्यवहार को देख लड़का आश्चर्यचकित था उसने जुलाहे को ग़ुस्सा दिलाने का प्रयास करते हुए साड़ी को एक बार फिर आधा फाड़ दिया और बोला, ‘आप तो बस इतनी सी साड़ी की क़ीमत बता दो।’ जुलाहे ने इस बार भी पूरी तरह शांत रहते हुए जवाब दिया, ‘सवा सौ रुपए।’ लड़का जुलाहे का व्यवहार देख हैरान था, उसने साड़ी को तार-तार कर फाड़ दिया और जुलाहे की ओर देखता हुआ बोला, ‘अब मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए क्यूँकि अब यह मेरे किसी काम की नहीं है।’ लड़के की बात सुन जुलाहा अभी भी पूरी तरह शांत था, ऐसा लग रहा था मानो साड़ी के ख़राब हो जाने से उसे कोई फ़र्क़ ही ना पड़ा हो। उसने पूरी गम्भीरता के साथ, लड़के को दया भाव से देखते हुए कहा, ‘बेटा अब यह तुम्हारे क्या, किसी के भी काम की नहीं बची है। इसलिए तुम ही नहीं कोई भी इसकी कोई क़ीमत नहीं देगा।’


जुलाहे का जवाब सुन लड़का शर्म से पानी-पानी हो गया और झेंपते हुए जुलाहे की ओर 500 का नोट आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘आप चिंता ना करें, मैं आपका नुक़सान चुकाने के लिए तैयार हूँ।’ संत समान जुलाहा एकदम से गम्भीर हो गया और बोला, ‘मैं आपसे यह पैसे नहीं ले सकता हूँ क्यूँकि आपने मुझसे साड़ी तो ली ही नहीं है।’ लड़के ने नुक़सान की ज़िम्मेदारी लेते हुए कहा, ‘देखिए मैं बहुत अमीर परिवार से हूँ। मुझे इस पाँच सौ रुपए से कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। लेकिन यह आपके लिए बड़ा नुक़सान है। वैसे भी नुक़सान अगर मैंने किया है तो उसका दाम भी मुझे भरना होगा।’


लड़के के मुँह से ज़िम्मेदारी भरी बात सुनते ही जुलाहे के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और वह हंसते हुए बोला, ‘अगर ऐसी बात है तो मैं तुम्हें बता दूँ कि तुम यह घाटा कभी पूरा नहीं कर पाओगे। क्यूँकि इस साड़ी को बनाने में कपास उगाने वाले किसान का श्रम, प्राकृतिक संसाधन, मेरी और पत्नी की मेहनत, ईश्वर का आशीर्वाद और समय लगा था। इन सब संसाधनों की क़ीमत तो तब वसूल होती जब कोई इसका उपयोग करता अर्थात् इसे पहनता; पर तुमने उसके टुकड़े कर डाले अब तुम्हीं बताओ रुपए से इन सब चीजों का घाटा कैसे पूरा होगा ?


दोस्तों, हममें से भी कई लोग इस लड़के के समान ही क़ीमती साड़ी समान अपने जीवन को सिर्फ़ और सिर्फ़ अहंकार की वजह से तार-तार कर देते हैं अर्थात् उसे सकारात्मकता के साथ खुलकर जीने के स्थान पर तात्कालिक लाभ या अपनी ताक़त या क़ीमत जताने के उद्देश्य से नकारात्मकता से भर देते हैं। अगर साथियों, आप वाक़ई इस जीवन का क़र्ज़ चुकाना चाहते हैं तो अहंकार को हमेशा के लिए त्याग दें अन्यथा सब कुछ होते हुए भी आप जीवन को कमियों से भरा पाएँगे। शायद इसीलिए कहा गया है, ‘अहंकार से जिस व्यक्ति का मन मैला है, वह करोड़ों की भीड़ में अकेला है।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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