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ज्ञान हमें जीवन से जोड़ता है…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • 16 hours ago
  • 3 min read

Oct 28, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, चलिए बताइये, “सच्चा ज्ञान क्या है और वो कहाँ मिलता है? क्या इसका लेन-देना विभिन्न विषयों की जानकारी होने से है या फिर यह किताबों में या स्कूल-कॉलेज में मिलता है? या फिर इसे किसी पर्वत पर ध्यान कर या गुफ़ा में ध्यानमग्न साधु के सानिध्य से पाया जा सकता है?" मेरे हिसाब से तो नहीं क्योंकि उपरोक्त सभी विकल्प अधूरे हैं। अगर आप वाकई सच्चा ज्ञान पाना चाहते हैं तो आपको वह रोज़मर्रा के जीवन की सादगी में या फिर किसी साधारण से इंसान के कर्म या दृष्टिकोण से मिल सकता है। चलिए अपनी बात को मैं आपको कन्फ्यूशियस से जुड़े एक किस्से के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ-


एक दिन शिष्यों का एक समूह महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस के पास पहुँचा और बोला, “गुरुदेव, वास्तव में सच्चा ज्ञानी कौन होता है और ईश्वर कहाँ है?” कन्फ्यूशियस ने जवाब देने के स्थान पर शिष्यों को साथ लिया और सीधे पहाड़ी के ऊपर स्थित एक गुफा में ले गए, जहाँ एक साधु ध्यान में मग्न था। कन्फ्यूशियस ने उनसे पूछा, “महात्मन, सच्चा ज्ञान क्या होता है?” ध्यानमग्न साधु झुँझलाकर बोले, “मेरे ध्यान में विघ्न डालकर मुझे परेशान मत करो।”


कन्फ्यूशियस ने उन्हें प्रणाम किया और बाहर आकर अपने शिष्यों से बोले, “यह छोटे दर्जे के ज्ञानी हैं, क्योंकि इन्होंने संसार से मुँह मोड़ लिया है। इनका ज्ञान केवल अपने तक सीमित है।” इतना कहकर वे आगे बढ़े और एक तेली, जो उस वक्त बैल से कोल्हू चला रहा था, को देखकर बोले, “भाई, क्या आप मुझे बतायेंगे ईश्वर कौन है और असली सुख क्या होता है?” तेली हँसते हुए बोला, “मेरे लिए यह बैल ही ईश्वर है। इसकी सेवा में ही मेरा सुख है।”



जवाब सुन कन्फ्यूशियस आगे बढ़े और शिष्यों से बोले, “यह मध्यम ज्ञानी है, क्योंकि यह कर्म करते हुए भी शांति का अनुभव करता है।” अंत में वे सभी को लेकर एक बुढ़िया के घर पहुँचे। जो उस वक्त चरखा कातते हुए पास ही खेल रहे बच्चों को देख खुश हो रही थी। कन्फ्यूशियस सहित सभी ने देखा कि चरखा कातते-कातते वह बीच में कभी बच्चों को प्यार से डाँटती, तो कभी समझाती, और साथ ही हँसती रहती। कन्फ्यूशियस उनके पास गए और प्रणाम करते हुए बोले, “माता, क्या आपने ईश्वर को देखा है?” बुढ़िया मुस्कराई और बोली, “हाँ बेटा, अभी यहीं, मेरे साथ था - बच्चों की हँसी में, उनके झगड़ों में, मेरे मनाने में। आपके आने से यहाँ से भाग गया।”


बुढ़िया का उत्तर सुन कन्फ्यूशियस मुस्कुराए और वहाँ से वापस अपने स्थान के लिए चल पड़े। रास्ते में उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “यह बुढ़िया ही सच्ची ज्ञानी है क्योंकि इसने ईश्वर को किसी रूप या ग्रंथ में नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षण में अनुभव किया। याद रखो, जो व्यक्ति भक्ति को कर्म से और ज्ञान को प्रेम से जोड़ कर जीवन में आगे बढ़ता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है।”


याद रखियेगा दोस्तों, सच्चा ज्ञान संसार से भागने में नहीं, बल्कि संसार को प्रेम और करुणा से जीने में है। जो इंसान हर पल में ईश्वर को महसूस करता है, वही वास्तव में ज्ञानी है। हम अक्सर सोचते हैं कि ज्ञान, ध्यान या तपस्या से मिलता है, परंतु हकीकत में असली ज्ञान तब जागता है, जब हम जीवन को स्वीकार करते हैं, हर परिस्थिति में अच्छाई खोजते हैं, और हर इंसान में ईश्वर देखते हैं।


कुल मिलाकर कहूँ तो ज्ञानी वह नहीं, जो अलग हो गया, बल्कि वह है, जो भीड़ में रहकर भी निर्मल है। जो बच्चों की हँसी में ईश्वर को देख सकता है, जो अपने कर्म में भक्ति का अनुभव करता है। इसलिए ही तो कहते हैं, “ज्ञान वह नहीं जो हमें दुनिया से दूर करे, ज्ञान तो वह है, जो हमें जीवन से जोड़ दे।"


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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