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दूसरों जैसा बनने के प्रयास में ख़ुद को ना भूलें…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • 4 days ago
  • 3 min read

Nov 22, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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जीवन ईश्वर का दिया एक सर्वश्रेष्ठ उपहार है लेकिन अक्सर लोग इसे दूसरों जैसा बनाने, उनकी अपेक्षाओं पर खरे उतरने में बर्बाद कर देते हैं। मेरा मानना है कि जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि दूसरों से तुलना या दूसरों की अपेक्षाओं में खोने से बचना है। इसी बात को समझाते हुए राल्फ वाल्डो इमर्सन ने कहा था, “To be yourself in a world that is constantly trying to make you something else is the greatest accomplishment."


जी हाँ, हमारा समाज “तुलना” नामक एक बहुत गहरी बीमारी से ग्रसित है और इसमें भी परेशान करने वाली बात यह है कि इसकी शुरुआत वहीं से होती है, जहाँ हमें सबसे ज़्यादा प्यार मिलना चाहिए याने बचपन से। आपने इस तरह की बातें निश्चित तौर पर सुनी ही होंगी, “देखो शर्मा जी का बेटा…” या “देखो वो कितना आगे निकल गया…” या फिर “तुम क्यों नहीं…?” इन कुछ शब्दों ने न जाने कितने बच्चों का आत्मविश्वास छीना है, कितने सपनों को कुचला है और कितनी ज़िंदगियों को दूसरों की अपेक्षाओं में बाँध दिया है।


अक्सर तुलना करते वक्त हम भूल जाते हैं कि बचपन में की गई तुलना, बड़े होकर बोझ बन जाती है। जिस बच्चे की तुलना बार-बार की जाती है वह समय के साथ स्वीकार लेता हैं कि “मैं पर्याप्त नहीं हूँ। मुझमें कई कमियाँ हैं।” उस बच्चे के अंदर एक अनचाहा डर पैदा हो जाता है जिसकी शुरुआत हिचकिचाहट से होती है, क्योंकि उसे लगने लगता है कि “अगर मैं उनकी उम्मीदों पर खरा न उतरा तो?” यही वजह है कि बहुत से लोग बड़े होने पर अपने सपनों को बीच में ही छोड़ देते हैं और दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा करने में लगे रहते हैं।


यह खेल असाधारण क्षमताओं के धनी इंसान से उसके सपने छीन लेता है। यह खेल उसे भूलने के लिए मजबूर करता है कि ये ज़िंदगी उसकी अपनी है। उसका हर पल उसका अपना है। उसके फैसले, उसके सपने, उसकी यात्रा आदि सब कुछ उसका है। हाँ यह सही है कि आपके माता-पिता, रिश्तेदार, समाज आदि आपसे उम्मीदें रख सकते हैं, पर आपकी ज़िंदगी का कंट्रोल उन्हें देना एक खतरनाक भूल है। ये सभी लोग आपका मार्गदर्शन तो कर सकते हैं, लेकिन आपके जीवन की दिशा तो आपको स्वयं को तय करना होगी।


इसलिए मैं हमेशा सभी को सलाह देता हूँ कि अपनी ज़िंदगी को दूसरों की अपेक्षाओं में मत बिगाड़िए। हर व्यक्ति की अपनी गति होती है। अपना हुनर होता है। अपनी मंज़िल होती है। अगर आप पंछी हैं, तो खुद को इसलिये मत कोसिए क्योंकि कोई दूसरा तैर सकता है। अपनी क्षमता के अनुसार आगे बढ़िए क्योंकि हर व्यक्ति अपनी जगह अनोखा है।


जी हाँ, तुलना की जंजीरें तोड़े बिना ख़ुद जीना शुरू करना असंभव है। याद रखें कभी-कभी ज़िंदगी आपसे सिर्फ इतना चाहती है कि आप “लोग क्या कहेंगे” से ऊपर उठ जाएँ। जब आप तुलना की आवाज़ों को नजरअंदाज कर देते हैं, तो आपको अपने भीतर की असली आवाज़ सुनाई देती है। जो आपका परिचय आपके जुनून, आपकी इच्छा, आपकी सच्चाई से कराती है और वही आवाज़ आपको आपकी असली मंज़िल तक ले जाती है।


दोस्तों, अगर अपने सपनों का जीवन जीना चाहते हैं तो इस एक छोटे से अभ्यास को आज से ही अपने जीवन का हिस्सा बना लें और ख़ुद से हर रात को सोने से पहले तीन सवाल पूछें—

१) क्या मैंने आज वह किया जो मैं करना चाहता था?

२) क्या आज मैंने किसी और की अपेक्षा को अपने ऊपर भारी तो नहीं होने दिया?

३) क्या आज का एक छोटा कदम मेरे बड़े सपने की ओर था?

आपको अगर एक भी जवाब “हाँ” में मिले, तो विश्वास कीजिएगा आप सही दिशा में जा रहे हैं।


अंत में इतना ही कहूँगा कि आप कितना भी कर लें दूसरों की अपेक्षाएँ कभी खत्म नहीं होंगी। इसलिए उनकी अपेक्षाओं को पूरा करने में अपनी ज़िंदगी ना गँवाएँ और अपनी ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जियें क्योंकि सच यही है कि यह ज़िंदगी आपकी ही है। याद रखियेगा दोस्तों, “दुनिया चाहे आपको बदलने की कितनी भी कोशिश करे, खुद बने रहना ही हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है।”


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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