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देना है तो बिना अहंकार और बिना अपेक्षा के दें…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Oct 8
  • 3 min read

Oct 8, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, जीवन में कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं, जो समय बीत जाने के बाद भी मन के किसी कोने में जिंदा रहती हैं। हैरी और मिस्टर मिलर की यह सच्ची कहानी, ऐसी ही एक कहानी है। जी हाँ, यह कहानी है साधारण से असाधारण लोगों की। दूसरे शब्दों में कहूँ तो यह कहानी है उन साधारण लोगों की जो अपने जीवन को असाधारण मानवीय मूल्यों के साथ जीते हैं।


बात कई साल पुरानी है एक दिन सुबह-सुबह हैरी आलू खरीदने के लिए सब्जी वाले के पास गया। वहाँ उसने देखा कि साफ़-सुथरे कपड़े पहने एक बहुत ही दुबला-पतला लड़का हरे मटर की टोकरी को निहार रहा था। उसके चेहरे से साफ़ झलक रहा था कि वो हरी मटर खरीदना तो चाह रहा है, लेकिन अभावों के कारण ले नहीं पा रहा है। वो कुछ कहता उसके पहले ही दुकान के मालिक मिलर ने मुस्कराते हुए कहा, “मिस्टर बैरी, क्या तुम थोड़ा मटर घर ले जाना चाहोगे?” मिलर की बात सुनते ही बैरी झेंप गया और किसी तरह बात सम्भालते हुए बोला, “नहीं… नहीं… मैं तो उसे बस देख रहा था।” कुछ क्षण चुप रहने के बाद बैरी अनायास ही बड़े धीमे शब्दों में बोला, “मेरी माँ घर पर काफ़ी बीमार है और मेरे पास आपको देने के लिए कुछ भी नहीं है।” मिलर बोले, “क्या वाक़ई तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है?” बैरी पूर्व की ही तरह धीमे से बोला, “मेरे पास बस इनाम में जीता हुआ यह नीला कंचा है; देखिए ना कितना सुंदर नीला है यह!”


मिलर ने उस लड़के की आँखों में ईमानदारी को देख लिया था, इसलिए वे बड़े स्नेह के साथ बोले, “वाह, वाक़ई यह बहुत बढ़िया है! लेकिन मुझे तो लाल कंचे पसंद हैं। अभी तुम यह हरी मटर ले जाओ और जब अगली बार आओ तब लाल कंचा ले आना, तब मैं तुम्हें और मटर दूँगा।” यह सुनते ही बैरी की आँखों में चमक आ गई, वह चहकता हुआ बोला, “ज़रूर सर!”


दोस्तों, उस दिन न केवल एक सौदा हुआ, बल्कि एक इंसानियत का बीज भी बोया गया। मिस्टर मिलर इसी तरह कई और बच्चों की मदद करते थे, वह भी उन्हें बिना एहसास कराए कि वे गरीब हैं। वो उनका आत्म-सम्मान बनाए रखते हुए उन्हें प्रेम और सहारा देते थे। मिलर के इस प्रयास को सदा के लिए अपने दिल में बसा हैरी वहाँ से लौट गए और संयोग वश वे कई सालों तक उस शहर वापस ना आ सके। लेकिन इस बात का अर्थ यह कतई नहीं है कि वे मिलर को भूल गए।


वर्षों बाद एक दिन हैरी वापस उस कस्बे में लौटे और मिस्टर मिलर से मिलने उनके घर पहुँचे। वहाँ उन्हें पता चला कि मिस्टर मिलर अब नहीं रहे और वहाँ उस वक्त शोकसभा चल रही है, जिसमें तीन युवक एकदम साफ कपड़ों में, सधे हुए, पूरे आत्मविश्वास के साथ खड़े हुए हैं। कुछ क्षणों बाद उन्होंने मिसेज़ मिलर को गले लगाया और कास्केट के पास जाकर कुछ देर मौन खड़े रहे। जब हैरी ने मिसेज़ मिलर से इस विषय में पूछा, तो उनकी आँखें नम हो गईं और उन्होंने रुंधे हुए गले से कहा, “हैरी, ये वही तीन लड़के हैं जिन्हें मिलर मटर देता था। आज वे अपना वादा निभाने आए हैं क्योंकि अब कंचों का रंग बदलने की गुंजाइश ही नहीं बची है।” इतना कह कर मिसेज़ मिलर ने धीरे से कास्केट के पास हाथ रखा, वहाँ, मिस्टर मिलर के स्थिर हाथों के नीचे तीन चमचमाते लाल कंचे रखे थे।” यह दृश्य हर दिल को पिघला देने वाला था।


मिलर ने अपने जीवन जीने के तरीक़े से यह सिखा दिया था कि किसी की ज़िंदगी में रोशनी फैलाने के लिए हमेशा बड़े कामों की ज़रूरत नहीं होती। कभी-कभी एक छोटी सी नेकी और एक “लाल कंचा” भी किसी की ज़िंदगी बदल सकता है। मिस्टर मिलर जैसे लोग हमें सिखाते हैं — देने का असली अर्थ “दया” है, जो बिना अहंकार और अपेक्षा के की जाए।


दोस्तों, यह कहानी हमें याद दिलाती है कि असली संपत्ति धन नहीं, दयालुता है। याद रखियेगा, दयालुता के साथ हमारे शब्द, हमारे छोटे से कर्म, किसी के जीवन में विश्वास जगा सकते हैं। अंत में इतना ही कहूँगा कि हममें से हर कोई किसी ना किसी के लिए “मिलर साहब” बन सकता है। बस एक बार दिल से देने की कोशिश कीजिएगा, शायद किसी की दुनिया थोड़ी और उजली हो जाए। याद रखियेगा दोस्तों, जब जीवन का हिसाब होगा, तब वहाँ लाल कंचों की कीमत सबसे ज़्यादा लगाई जाएगी।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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