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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

बनाना बड़ा ब्रांड तो रखें लोगों का ख़याल…

Dec 03, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, दो दिन पूर्व 30 नवंबर को मुझे कृषि एवं डेयरी के क्षेत्र में देश ही नहीं दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में से एक संस्थान आईसीएआर, एन॰डी॰आर॰आई॰ जाने का मौक़ा मिला। संस्थान ने मुझे अपने स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यशाला में विशेषज्ञ के रूप में तकनीकी क्षेत्र में कार्यरत लोगों को ट्रेन करने के लिए आमंत्रित किया था। हालाँकि मैं पूर्व में भी इस संस्थान में अपनी मोटिवेशनल स्पीच के लिए आमंत्रित किया जा चुका था, लेकिन उसके बाद भी मन के एक कोने में संशय था कि ‘सरकारी संस्थान है, क्या पता क्या स्थिति या व्यवस्थाएँ होंगी? ’ लेकिन दिल्ली एयरपोर्ट से लेकर अपने कार्यक्रम या यूँ कहूँ संस्थान से वापस निकलते तक मुझे अव्यवस्था तो छोड़िए, ज़रा सी भी कमी नज़र नहीं आयी। मेरी हैरानी उस वक्त और बढ़ गई जब मैं 1400 एकड़ में फैले इस संस्थान को देखने गया। इस टूर के दौरान मुझे खेती, गाय, भैंस, बकरी और बेलों के बाड़े जैसे परम्परागत स्थानों और कार्यों से लेकर आधुनिक डेयरी, रिसर्च सेंटर तक, सब जगह, तकनीकी, मैनेजमेंट और परम्परागत शैली का अद्भुत सम्मिश्रण देखने को मिला।


मैं हैरान था, अंग्रेजों के समय में घोड़ों को रखने के लिए बनाए गए स्थान को 1923 में बैंगलोर में स्थापित एन॰डी॰आर॰आई॰ द्वारा 1952 में टेक ओवर करने के बाद, इतने व्यवस्थित संस्थान का रूप कैसे दे दिया गया? साथियों, यहाँ मेरे प्रश्न की गहराई को समझने के लिए यह याद रखना ज़रूरी है कि 1400 एकड़ के कैम्पस में जहाँ कम से कम 1000 एकड़ के खेत, डेयरी आदि हैं, जिसपर कई सौ मज़दूर रोज़ कार्य करते हैं, को व्यवस्थित रखना आसान नहीं है।


ख़ैर, जैसे-जैसे मैं वहाँ कार्यरत लोगों से मिलता जा रहा था, मेरी दुविधा दूर होती जा रही थी। फिर चाहे वह वहाँ का ड्राइवर हो या गेस्ट हाउस का केयर टेकर या फिर बेलों को रखने वाले बाड़े का इंचार्ज अथवा कोई वरिष्ठ अधिकारी। सभी कर्मचारियों में एक बात समान रूप से मौजूद थी, वे सभी अपने कार्य और संस्थान से ना सिर्फ़ प्यार करते थे, बल्कि उसकी पूरी ओनरशिप भी लेते थे। उदाहरण के लिए, मुझे एन॰डी॰आर॰आई॰ घुमाने के लिए ले गए ड्राइवर पवन को ही ले लीजिए, वैसे तो उनका कार्य गाड़ी चलाना था। लेकिन एक अन्य अधिकारी के कहीं और व्यस्त हो जाने पर वे मेरे लिए गाइड और टूर के दौरान साथी की भूमिका निभा रहे थे। इतना ही नहीं तकनीकी, रिसर्च और एन॰डी॰आर॰आई॰ के सभी उत्पादों के संदर्भ में उनके ज्ञान से मैं पूरी तरह अभिभूत था।


कर्मचारियों का संस्थान के प्रति लगाव, समर्पण और ओनरशिप के साथ कार्य के प्रति गम्भीरता देख मुझे सौ सालों की लीगैसी

या विरासत अथवा अपने क्षेत्र में नम्बर वन बनने की वजह तो समझ आ गई, लेकिन अब मेरे मन में एक नया प्रश्न था कि एन॰डी॰आर॰आई॰ ने अपने कर्मचारियों में यह भाव पैदा कैसे किया? मुझे अपने इस प्रश्न का जवाब एन॰डी॰आर॰आई॰ के डायरेक्टर श्री धीर सिंह जी से हुई मुलाक़ात के दौरान मिल गया। हमारी पूरी बातचीत के दौरान उनका फ़ोकस कर्मचारियों के लिए क्या बेहतर किया जा सकता है, पर था। संस्थान में सभी अधिकारी अपने अधीनस्थों के साथ पूरे सम्मान के साथ व्यवहार करते नज़र आ रहे थे, फिर वे चाहे पद में छोटे हों या बड़े।


दोस्तों, अगर आप भी व्यवसायी है और अपनी कम्पनी को नई ऊँचाइयों पर ले जाकर एक ब्रांड के रूप में स्थापित करना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको अपने कर्मचारियों के प्रति उदार रवैया अपनाते हुए, उनके मन में विश्वास जगाना होगा कि संस्थान में कोई है, जो हर पल आपका ध्यान रख रहा है, आपकी स्थिति-मनःस्थिति को समझ रहा है तथा आपके जीवन को आसान और बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत है। जी हाँ साथियों, अगर आप अपने कर्मचारियों के प्रति समर्पण का भाव दर्शाएँगे तो वे भी पूरे समर्पण के साथ संस्थान के लिए कार्य कर पाएँगे, जैसा एन॰डी॰आर॰आई॰ ने किया था।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर



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