मन की गहराई में बैठे इस गुण से जीते जहां…
- Nirmal Bhatnagar
- Sep 30
- 2 min read
Sep 30, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ लोगों से मिलते ही हमें अपनेपन का अहसास क्यों होने लगता है? और क्यों कुछ लोगों के साथ बैठकर हम सहज महसूस नहीं कर पाते? मेरी समझ से इन दोनों प्रश्नों का उत्तर एक ही शब्द से दिया जा सकता है – विनम्रता। जी हाँ दोस्तों, विनम्रता केवल शब्दों में झलकती मिठास नहीं है, बल्कि यह मन की गहराई में बैठा एक गुण है। जब व्यक्ति अहंकार से मुक्त होता है या कम से कम उस पर नियंत्रण रखता है, तभी उसका व्यवहार दूसरों को सहज बनाता है। यह मान लेना कि “सिर्फ मेरा ज्ञान ही सही है” या “मैं दूसरों से श्रेष्ठ हूँ”, मेरी नजर में अहंकार की जड़ है। अहंकार का बोझ न केवल हमें भारी बना देता है बल्कि दूसरों से दूरी भी बढ़ा देता है।
सोच कर देखियेगा दोस्तों, हममें से कोई भी इंसान सिर्फ़ इस जन्म में ही नहीं, बल्कि अनेकों-अनेक जन्मों में भी ब्रह्मांड का सारा ज्ञान नहीं पा सकता। हम जो भी जानते हैं, वह असंख्य लोगों के अनुभवों और विचारों का केवल एक छोटा-सा हिस्सा है। इसलिए उपनिषद भी हमें यही सिखाते हैं कि हमें सदैव विनम्र रहना चाहिए और यह स्वीकार करना चाहिए कि “मुझे सब कुछ नहीं आता।” यही भाव हमें सीखते रहने और दूसरों के विचारों का सम्मान करने की शक्ति देता है।
जब हम अपने भीतर विद्यार्थी को जीवित रखते हुए, जीते हैं तो हमारे अंदर नई अनुभूतियाँ जन्म लेती हैं। हम हर इंसान, हर परिस्थिति और हर अनुभव से कुछ नया सीखने लगते हैं। यही दृष्टिकोण हमें और अधिक संवेदनशील, करुणामय और सहानुभूतिशील बनाता है। याने सीखना हमें असलियत में इंसान बनाता है। हमें एहसास करवाता है कि सच्चा ज्ञानी वही है जो अपनी सीमाओं को समझ लेता है और यह जानता है कि अंतिम सत्य उसकी पहुँच से परे है। वह जीवन भर विनम्रता से सीखने में ही आनंद खोजता है।
इस आधार पर कहा जाए तो रिश्तों की सच्चाई हमारे दिल की गहराई पर निर्भर करती है। यदि आप चाहते हैं कि कोई आपके दिल में जगह बनाए, तो अपना दिल बड़ा कीजिए। और यदि आप किसी के दिल में बसना चाहते हैं, तो स्वयं छोटे हो जाइए। यही जीवन का सुंदर रहस्य है, जिसे विनम्रता के साथ ना सिर्फ़ समझा जा सकता है, बल्कि अपने जीवन में उतारा जा सकता है। इसलिए ही मैं कहता हूँ कि विनम्रता हमें न केवल बेहतर इंसान बनाती है, बल्कि हमें रिश्तों में भी अधिक स्वीकार्य और प्रिय बना देती है।
दोस्तों अंत में निष्कर्ष के तौर पर इतना ही कहूँगा कि जीवन का सबसे बड़ा पाठ यही है कि हम सदा विद्यार्थी बने रहें। जब तक हमारे अंदर सीखने का भाव जीवित रहेगा, तब तक हमारा जीवन तरोताज़ा बना रहेगा। याद रखियेगा, जैसे ही हम यह सोचने लगते हैं कि “अब मुझे सब कुछ आ गया,” वहीं से जीवन में ठहराव और अहंकार शुरू हो जाता है।
इसलिए दोस्तों जीवन को सुंदर और सार्थक बनाने का केवल एक ही उपाय है, विनम्र रहो, सीखते रहो और सदैव विद्यार्थी बने रहो।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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