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शक्ति का सही मूल्य संयम, करुणा और गरिमा में है…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Oct 5
  • 3 min read

Oct 5, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, ईश्वर की बनाई प्रकृति को जानने का हम जितना प्रयास करते हैं, यह हमें उतना ही अचंभित करती है। जैसे आप शक्ति और विशालता के प्रतीक हाथी को ही ले लीजिए, ये अपने शरीर से जितना विशाल, शक्तिशाली और महान होता है, उतना ही अपने दिल से उदार, संवेदनाओं और करुणा से भरा, आत्मसंयम रखने वाला जीव होता है। चलिए इस बात को हम विषम परिस्थितियों के बीच किए गए उसके व्यवहार से समझने का प्रयास करते हैं।


जब किसी हाथी को एक देश से दूसरे देश जैसे भारत से अमेरिका ले जाया जाता है, तो उसे एक बड़े क्रेट में खड़ा कर, उसके आसपास मुर्गी के छोटे चूजों को छोड़ दिया जाता है। अब आप सोच रहे होंगे ऐसा क्यों? तो मैं कहूँगा सिर्फ़ उसके संवेदनशील स्वभाव के लिए। नहीं समझ पाये ना? चलिए विस्तार से इस पर चर्चा कर लेते हैं। असल में हाथी अपने स्वभाव से इतना संवेदनशील होता है कि अपने आसपास नन्हें चूजों को देख घंटों तक एक ही स्थान पर एकदम शांत खड़ा रहता है। वह नहीं चाहता है कि उसके कारण किसी और का नुकसान हो जाए।


संयम और करुणा से भरा उसका यही व्यवहार मेरी नजर में शक्ति का पहला और सबसे बड़ा इम्तिहान है। इसी बात को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने जब हाथियों के मस्तिष्क का अध्ययन किया, तो पाया कि उनमें विशेष प्रकार की स्पिंडल कोशिकाएँ होती हैं, जो केवल इंसान और बंदर जैसी कुछ ही प्रजातियों में पाई जाती हैं। ये कोशिकाएँ उन्हें आत्म-जागरूकता याने सेल्फ कॉन्शियस, सहानुभूति और सामाजिक जुड़ाव का एहसास कराती हैं। याने हाथी जितना शारीरिक रूप से विशाल होता है, उतना ही भावनात्मक रूप से भी महान होता है।


हाथियों की इसी विशेषता को देखकर सदियों पहले लियोनार्डो दा विंची ने लिखा था, “हाथी न्याय, विवेक और संयम का प्रतीक है। जब वह नदी में प्रवेश करता है तो इतनी शांति से उतरता है कि एक छींटा भी किसी पर नहीं उछलता। वह नदी में इतनी गरिमा से स्नान करता है, मानो पवित्र अनुष्ठान कर रहा हो।” इतना ही नहीं हाथी कभी अकेला नहीं चलता, वह हमेशा झुंड में चलता और रहता है और अपने समूह के सबसे छोटे सदस्य को हमेशा अपने झुंड के बीचों-बीच रखता है। चलते समय हाथी दूसरों को रास्ता दिखाता है, और अगर कोई अन्य जानवर या उसका समूह सामने आ जाये, तो वह आक्रामक नहीं होता। ज़्यादा से ज़्यादा वह अपनी सूँड़ से सामने वाले को बिना चोट पहुँचाये साइड में कर देता है।


जीवन के अंतिम क्षणों में याने जब हाथी को अपनी मृत्यु का आभास होता है, तब वह धीमे से अपने झुंड को छोड़ कर, मरने के लिए अलग चला जाता है। जानते हैं क्यूँ? सिर्फ़ इसलिए कि समूह के अन्य छोटे हाथियों को शोक का सामना ना करना पड़े। याने वह दुख का सारा बोझ स्वयं ही उठाता है। दोस्तों, हाथी हमें गरिमा, करुणा और विनम्रता की सबसे गहरी सीख देता है।


कुल मिला कर कहूँ तो हाथी हमें सिखाता है कि असली ताक़त दूसरों को कुचलने में नहीं, बल्कि उनकी रक्षा करने में है। सच्ची महानता अपने अधिकार जताने में नहीं, बल्कि अपने अहंकार को नियंत्रित करने में है और सबसे बड़ा त्याग वही है, जिसमें हम दूसरों की ख़ुशी के लिए अपने दुःख को चुपचाप सह लें। तेज रफ़्तार, स्वार्थ और प्रतिस्पर्धा से भरी इस दुनिया में हाथी का जीवन हमें सिखाता है कि “शक्ति का सही मूल्य संयम, करुणा और गरिमा में है।” इसलिए दोस्तों, अगर सच्चा इंसान बनाना चाहते हैं तो करुणा, आत्मसंयम, और गरिमा को अपने जीवन में उतारें।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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