सबको खुश रखना संभव नहीं…
- Nirmal Bhatnagar
- Sep 28
- 3 min read
Sep 25, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जीवन में सबको खुश रख कर आगे नहीं बढ़ा जा सकता है क्योंकि सबकी बात मान कर, सबके अनुसार निर्णय लेकर ज़िंदगी में आगे बढ़ना असंभव ही है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो सबको खुश रखने के प्रयास में अंत में कोई खुश नहीं रहता; ना तो लोग, ना ही खुश करने का प्रयास करने वाला। इसलिए दूसरों की बात सुनिए, लेकिन अपनी समझ और मूल्यों पर भरोसा रखिए। यही आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास और सार्थक जीवन की नींव है। चलिए अपनी बात को मैं बचपन में सुनी एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-
एक दिन राजू अपने गधे पर बैठकर बाज़ार जा रहा था, तभी रास्ते से गुज़र रहे एक आदमी ने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा, “देखो! गधा तो सामान उठाने के लिए होता है, लेकिन ये खुद उस पर सवार होकर जा रहा है।” राजू को उस व्यक्ति की बात उचित लगी इसलिए वो गधे से नीचे उतरा और बाजार से ख़रीदा अनाज का बोरा उस पर रख आगे बढ़ गया। थोड़ी दूर चलने पर उसे दूसरा राहगीर मिला। वो उसे इस तरह जाते देख बोला, “वाह! एक गधा तो खाली जा रहा है और दूसरा खुद पैदल चल रहा है। यह कैसा न्याय है?”
राजू ने सोचा शायद यह ठीक कह रहा है। वो फिर से गधे पर चढ़ गया। आगे जाकर उसे तीसरे आदमी ने टोकते हुए कहा, “अरे! देखो यह गधे पर कितना अत्याचार है! ये आदमी गधे से ख़ुद और बोरे, दोनों का बोझा उठवा रहा है। यह तो बेचारे गधे पर अत्याचार है।”
इन सज्जन की बात सुन राजू बुरी तरह घबरा गया और बोरे को अपने सर पर उठा, गधे को साथ लेकर पैदल चलने लगा। तभी उसे चौथे आदमी ने टोकते हुए बोला, “देखो इस महामूर्ख आदमी को, गधा खाली है और यह खुद बोरा ढो रहा है।” इसकी बात सुन राजू ने सिर पकड़ लिया और हँसते हुए कहा, “लगता है दुनिया को खुश करना मेरे बस की बात नहीं!”
दोस्तों, यह कहानी सुनने में जितनी मज़ेदार है, उतना ही गहरा सबक अपने अंदर लिए हुए है। आइए संक्षेप में उन सभी संदेशों पर चर्चा कर लेते हैं-
पहला सबक – सबको खुश करना असंभव है
दुनिया में हर किसी की राय अलग होगी। अगर आप हर किसी की बात मानकर अपना रास्ता बदलते रहेंगे, तो आप कभी अपनी मंज़िल तक नहीं पहुँच पाएँगे।
दूसरा सबक – आत्मविश्वास ही असली ताकत है
यदि राजू अपने निर्णय पर अड़ा रहता तो कम से कम अपने मन की शांति बनाए रखता। जीवन में हमें दूसरों की सलाह सुननी चाहिए, लेकिन निर्णय अपने विवेक से करना चाहिए।
तीसरा सबक – आलोचना से ना डरें
लोग क्या कहेंगे, यह सोचकर हम अपने सपनों और फैसलों को अधूरा छोड़ देते हैं। याद रखिए, लोग हमेशा कुछ न कुछ कहेंगे। असली जीत तब है जब हम आलोचना के बावजूद आगे बढ़ें।
चौथा सबक – सार्थक जीवन अपने चुनावों से बनता है
जीवन की सार्थकता इस बात में नहीं है कि कितने लोग हमें सही कहते हैं, बल्कि इस बात में है कि हमने अपने मूल्यों और विवेक के अनुसार कैसे निर्णय लिए।
दोस्तों, राजू की अंतिम हंसी ना सिर्फ हमें हंसाती है बल्कि हमें जीवन का आईना भी दिखाती है। हम सब कहीं-न-कहीं दूसरों की राय में उलझकर अपने रास्ते से भटक जाते हैं। परंतु असली बुद्धिमानी यही है कि हम सही-गलत को समझकर, आलोचना की परवाह किए बिना, आत्मविश्वास से आगे बढ़ें, तब ही हम खुश रहते हुए अपने लक्ष्यों को पा पायेंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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