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सभी सलाह काम की नहीं होती…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • 11 minutes ago
  • 3 min read

July 15, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, दूसरों से प्रेरणा लेना, किसी की बातों या सलाह से प्रभावित होना बड़ा सामान्य है। लेकिन इस प्रभाव के कारण ख़ुद की सोच और समझ को नजरंदाज करना या दिशाहीन हो जाना निश्चित तौर पर नुकसानदेह होता है। अपनी इसी बात को मैं आपको एक बहुत ही सरल, पुरानी लेकिन गहरी सीख देने वाली कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।


गाँव में रहने वाले सुरेश ने अपनी आजीविका चलाने और सपनों को पूरा करने के उद्देश्य से अगरबत्ती बेचने की एक दुकान खोली और उसके बाहर बोर्ड लगाया, “यहाँ सुगंधित अगरबत्तियाँ मिलती हैं।” कुछ ही दिनों में सुरेश की दुकान चल निकली, लेकिन इसी के साथ शुरू हुआ परिचितों और ज्ञानियों द्वारा दिया जाने वाला सुझावों का सिलसिला। किसी ने कहा, “अगरबत्तियाँ तो वैसे भी सुगंधित होती हैं, इसलिए बोर्ड में से ‘सुगंधित’ शब्द हटा दो।”; किसी ने कहा, “दुकान यहीं है, तो फिर बोर्ड पर ‘यहाँ’ शब्द लिखने की क्या ज़रूरत?”


एक सज्जन तो यहाँ भी नहीं रुके और सुझाव देते हुए बोले, “अगरबत्तियाँ मिलती हैं’ लिखने की भी क्या जरूरत है, सिर्फ़ ‘अगरबत्ती’ लिख दो।” लोगों को अपने आप ही पता चल जाएगा कि यह अगरबत्ती की दुकान है।” सुरेश इस पर विचार कर ही रहा था कि एक और ज्ञानी आए और बोले, “बोर्ड लगाने की ही क्या जरूरत है? दुकान बाजार की मुख्य सड़क पर है, लोगों को अपने आप ही दिख जायेगा कि यहाँ अगरबत्तियाँ मिलती है।”


सुरेश को सबकी बातें उचित लगी थी इसलिए उसने उन्हें मानते-मानते अंत में दुकान से बोर्ड ही हटा दिया। बीतते समय के साथ सुरेश की दुकान पर ग्राहकों की संख्या काफ़ी कम हो गई और वह परेशान रहने लगा। एक दिन उसने अपने परम मित्र से सलाह लेने का निर्णय लिया और उनको सारी कहानी कह सुनाई। मित्र कहानी सुन पहले तो हँसे, फिर एकदम गंभीर स्वर में साफ़-साफ़ बोले, “सुरेश तू मूर्ख है! दुकान खोल ली लेकिन उसपर लगा बोर्ड हटा लिया। तू ही बता लोग जानेंगे कैसे कि इस दुकान पर क्या मिलता है?”


कहने की जरूरत नहीं है कि परम मित्र की सलाह के बाद सुरेश ने क्या किया होगा और उसे क्या परिणाम मिला होगा। चलिए हम तो सीधे इस कहानी से मिलने वाली जीवन की गहरी सीखों पर चर्चा करते हैं-


1) हर सलाह को आँख मूँदकर न अपनाएँ — सुझाव सब देंगे, लेकिन उनकी उपयोगिता को समझना ज़रूरी है।

2) अपनी सोच पर विश्वास रखें — आप अपनी ज़िन्दगी को सबसे बेहतर समझते हैं, इसलिए अपने निर्णयों पर भरोसा कीजिए।

3) विशेषज्ञ की सुनें, शौकिया आलोचकों की नहीं — सलाह उसी से लीजिए जो विषय को वास्तव में समझता हो।

4) सबको खुश करना असंभव है — अगर आप सबकी मानने लगें तो ना आप खुश रह पाएँगे, ना कुछ सही कर पाएँगे।

5) किसी भी निर्णय से पहले सोचिए कि उसका असर दीर्घकालिक होगा या क्षणिक — कई बार हम क्षणिक प्रशंसा के लिए ऐसा करते हैं जो बाद में नुकसानदेह हो जाता है। कोई भी बदलाव या निर्णय लेने से पहले यह सोचें कि वह आपके उद्देश्य को कितना पूरा करता है।


याद रखिएगा दोस्तों, कभी-कभी लोग सिर्फ़ बोलने के लिए बोलते हैं, इसलिए ज़रूरी नहीं कि उनकी हर बात सही हो। ज़िंदगी में अपनी सोच और अनुभव को प्राथमिकता दीजिए। दूसरों की सुनी-सुनाई बातों के पीछे भागकर अपनी पहचान और रास्ता मत खोइए। आप क्या हैं, क्या करना चाहते हैं, ये आपसे बेहतर कोई नहीं जानता। इसलिए दोस्तों, अगली बार कोई सुझाव दे, तो सोचिए — क्या ये सलाह मेरे लिए सही है? अगर नहीं, तो विनम्रता से मुस्कराइए… और अपनी राह पर आगे बढ़ जाइए।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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