साधना, अनुशासन और आत्म-चिंतन से मन को मथें…
- Nirmal Bhatnagar
- 9 hours ago
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Oct 18, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

छोटे से गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। लोगों के घर पूजा-पाठ करके वो अपना जीवन चला रहा था। एक दिन राजा ने उसे पूजा करने के लिए दरबार में बुलवाया और पूजा समाप्त होने के बाद उससे तीन प्रश्न पूछे। बताओ ब्राह्मण, 'ईश्वर कहाँ रहता है? वह किधर देखता है? और वह क्या करता है?' कुछ क्षणों तक सोचने के बाद ब्राह्मण ने राजा से कुछ दिनों की मोहलत माँगी, जिसे स्वीकार कर राजा ने उसे एक माह का समय दिया।
अब ब्राह्मण के मन में हर क्षण यही प्रश्न घूमते थे जिसकी वजह से वो परेशान रहने लगा। पिता को चिंतित देख एक दिन उसके बुद्धिमान बेटे ने जब इसकी वजह पूछी तो ब्राह्मण ने सारी बात कह सुनाई। जिसे सुन बेटा मुस्कराया और बोला, “पिता जी, आप चिंता मत कीजिए हम कल राज दरबार चलेंगे और राजा के सारे प्रश्नों के उत्तर मैं दूँगा।”
अगले दिन राजमहल पहुँच कर ब्राह्मण ने पहले राजा को प्रणाम किया और कहा, “महाराज, आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मेरा बेटा देगा।” इतना सुनते ही राजा ब्राह्मण के बेटे को देखते हुए बोले, “बताओ, ईश्वर कहाँ रहता है?” ब्राह्मण का लड़का बोला, “महाराज, पहले अतिथि का स्वागत तो कीजिए।” बच्चे की बात सुन राजा थोड़ा शर्मिंदा हुआ और सेवकों से दूध मंगवा कर लड़के को दिया।
दूध लेते ही लड़के ने उसमें उंगली घुमाना शुरू कर दिया और उसके अंदर झाँकने लगा, और बोला, “महाराज, सुना था दूध में मक्खन होता है, पर मुझे कहीं दिख ही नहीं रहा!” राजा मुस्कुराए और बोले,“मक्खन ऐसे नहीं दिखता, उसके लिए दूध को जमाकर दही बनाना पड़ता है, फिर मथना पड़ता है।” उत्तर सुनते ही लड़का बोला, “बस महाराज, यही तो आपके प्रश्न का उत्तर है! परमात्मा हर जीव के भीतर है, लेकिन उसे देखने के लिए साधना, अनुशासन और आत्म-चिंतन से मन को मथना पड़ता है।”
इस उत्तर ने राजा के मन को छू लिया, उन्होंने दूसरा प्रश्न पूछा, “ईश्वर किधर देखता है?” लड़के ने मोमबत्ती जलाकर राजा से पूछा, “महाराज, यह रोशनी किस दिशा में फैल रही है?” राजा बोले, “चारों तरफ!” यह सुन लड़का मुस्कुराते हुए बोला, “इसी तरह परमात्मा की दृष्टि भी सब ओर है। वह सर्वदृष्टा है — सबको देखता है, सबके कर्मों का साक्षी है।” उत्तर सुन राजा एक बार फिर स्तब्ध रह गए। उन्होंने उस लड़के से तीसरा प्रश्न किया, “ईश्वर क्या करता है?” लड़के ने प्रश्न के उत्तर में प्रश्न करते हुए पूछा, “महाराज, आप यह प्रश्न गुरु बनकर पूछ रहे हैं या शिष्य बनकर?” राजा एकदम नम्र होकर बोले, “शिष्य बनकर।”
इस पर लड़का बोला, “महाराज, तब आप सिंहासन पर क्यों बैठे हैं और मैं नीचे? शिष्य को नीचे और गुरु को ऊपर होना चाहिए।” उत्तर सुन राजा ने विनम्रता से सिंहासन छोड़ दिया और लड़के को वहाँ बैठा दिया। इस पर लड़का मुस्कुराते हुए बोला, “महाराज, देखिए ईश्वर क्या करता है! वह एक ही क्षण में राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है।” इस उत्तर ने राजा को भाव-विभोर कर दिया। उसने उसी क्षण ब्राह्मण के बेटे को अपना सलाहकार बना लिया।
दोस्तों, ईश्वर कोई दूर आकाश में या देवलोक में बैठा हुआ नहीं है। वह हमारे भीतर है, हमारे कर्मों में है, और हमारे विचारों में है। वह सबको देखता है और सबके कर्मों का फल देता है, कभी राजा को विनम्र बनाकर, तो कभी गरीब को महान बनाकर। दोस्तों, जो मन को मथता है, वही “मक्खन” पाता है और जो भीतर झाँकता है, वही “ईश्वर” को देख पाता है। इसलिए जीवन का सबसे बड़ा धर्म है, सच्चे मन से कर्म करना, विनम्र रहना और हर हृदय में विराजित ईश्वर को पहचानना।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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