सेल्फ डेवलपमेंट के 4 प्रमुख सूत्र…
- Nirmal Bhatnagar
- Oct 2
- 3 min read
Oct 2, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अक्सर लोग सेल्फ डेवलपमेंट को भौतिक उपलब्धियों याने ऊँचे पद, ढेर सारा धन या सम्मान आदि से जोड़ कर देखते हैं। लेकिन मेरी नजर में यह सही नहीं है क्योंकि असली विकास बाहरी उपलब्धियों से नहीं, बल्कि भीतर के गुणों से मापा जाता है। जब आप जिम्मेदार बन, ओनरशिप के साथ जीवन में आगे बढ़ते हैं और दैनिक जीवन में क्षमाशीलता याने फॉरगिवनेस के साथ जीवन जीते हैं, तब आप सही मायने में अपने व्यक्तित्व का विकास करते हैं। चलिए आज हम इस विषय को थोड़ा गहराई के साथ समझने का प्रयास करते हैं-
1) जिम्मेदार बनना याने अपना आत्मबल बढ़ाना
दोस्तों जब हम जिम्मेदार बन, अपने जीवन को परिस्थितियों के हवाले करने से इनकार करते हैं याने जीवन की बागडोर ख़ुद के हाथों में रखते हैं, तब आप एक गहरी आंतरिक शक्ति का अनुभव करते हैं; अपने आत्मबल को बढ़ाते हैं। जिम्मेदारी लेना हमें यह एहसास कराता है कि, “मेरा कल, मेरे आज के फैसलों पर निर्भर है।” यही सोच इंसान को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाती है। जबकि इसके विपरीत अपनी गलतियों को स्वीकारने के स्थान पाए, परिस्थितियों या दूसरों को दोष देना हमें कमजोर और निर्भर बनाता है।
2) ओनरशिप लेना याने आत्मविश्वास बढ़ाना
जीवन में स्वामित्व का अर्थ अपने निर्णयों, कार्यों और परिणामों को पूरी ईमानदारी से स्वीकारना है। जब हम यह समझ लेते हैं कि हम अपने जीवन के निर्माता हैं, तो ईश्वर या जीवन के प्रति शिकायतें अपने आप ही कम हो जाती हैं और हमारे अंदर समाधान तलाशने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। यही भाव हमारी ऊर्जा और आत्मविश्वास को कई गुना बढ़ा देता है।
3) साहस और करुणा का संतुलन
पूर्णता के एहसास के साथ जीवन जीने के लिए साहस और करुणा का अद्भुत संतुलन का होना आवश्यक है। यह संतुलन हमें जीवन में मानवीय नजरिये के साथ आगे बढ़ने के साथ साहसी और अनुशासन प्रिय बनाता है। इसलिए कार्य करते वक्त योद्धा का साहस रखें और रिश्तों में संतों से जैसी करुणा। कार्य करते वक्त साहस रखना हमें अपने लक्ष्यों के प्रति दृढ़ निश्चयी और अनुशासन प्रिय बनाता है और रिश्तों में करुणा का होना परिवार और समाज को संवेदनशील और दयावान बनाता है।
4) क्षमाशीलता के साथ जीना
क्षमाशीलता के साथ जीना मेरी नज़र में स्वयं को मानसिक रूप से स्वतंत्र रखना है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि हर इंसान से जाने-अनजाने में ग़लतियाँ होती है। ऐसे में उसे उसकी एक गलती के लिए जीवन भर सजा देना, उचित नहीं है। वैसे इसका एक और नुकसान है, जब आप किसी को माफ करे बिना जीते हैं, तब आप अपने जीवन को भी बोझिल बनाते है।याने क्षमाशीलता केवल दूसरों के लिए नहीं, बल्कि अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है। याद रखियेगा, क्षमा करने का अर्थ है – नकारात्मकता से मुक्त होकर आगे बढ़ना। यही मानवता की सबसे बड़ी शक्ति है, जो रिश्तों को भी जोड़ती है और आत्मा को भी हल्का करती है।
उपरोक्त आधार पर कहा जाए तो आत्म-सुधार की राह पर चलकर सच्चा विकास तभी संभव है, जब हम निम्न चार बातों को अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ-
1) अपनी कमियों को स्वीकार करने का साहस रखें।
2) दूसरों की भूलों को माफ करने का दिल रखें और
3) सीखने-सुधारने की निरंतरता बनाए रखें।
याद रखियेगा दोस्तों, उपरोक्त सूत्रों को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाना, हमें हर दिन बेहतर इंसान बनाता है।
कुल मिलाकर कहा जाए तो कठोरता और कोमलता, महत्वाकांक्षा और मानवीयता, व्यक्तिगत लक्ष्य और सामाजिक संवेदनशीलता का सही संतुलन ही सच्चे विकास का रास्ता है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो सही मायने में सेल्फ डेवलपमेंट याने आत्म-विकास तभी होता है जब इंसान स्वयं को केवल सफल नहीं, बल्कि सार्थक भी बनाता है। इसलिए ही मैंने पूर्व में कहा था, जिम्मेदारी, स्वामित्व और क्षमाशीलता को जीवन का हिस्सा बनाकर हम न सिर्फ खुद को बेहतर बनाते हैं, बल्कि दूसरों के जीवन में भी रोशनी भरते हैं। याद रखिएगा दोस्तों, बाहरी उपलब्धियाँ तालियाँ बटोर सकती हैं, लेकिन भीतरी गुण ही अमर विरासत बनते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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